❇️ बर्निल की दीवार :-
🔹 पूर्वी और पश्चिमी खेमे के बीच विभाजन का प्रतीक थी । यूरोप महाद्विप में जर्मनी देश की राजधानी बर्लिन । शीतयुद्ध के प्रतीक 1961 में बनी बर्लिन की दीवार को 9 नवंबर 1989 को जनता द्वारा तोड़ दिया गया । यह 28 बर्ष तक खड़ी रही । तथा यह 150 KM लम्बी थी ।
✳️ सोवियत संघ ( U . S . S . R . ) :-
🔹 1917 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ ( U . S . S . R . ) अस्तित्व में आया ।
🔹 सोवियत संघ में कुल मिलाकर 15 गणराज्य थे अर्थात 15 अलग – अलग देशों को मिलाकर सोवियत संघ का निर्माण किया गया था ।
🔹 सोवियत संघ का निर्माण गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया । इसे समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा के अनुसार बनाया गया ।
- 1) रूस
- 2) यूक्रेन
- 3) जॉर्जिया
- 4) बेलारूस
- 5) उज़्बेकिस्तान
- 6) आर्मेनिया
- 7) अज़रबैजान
- 8) कजाकिस्तान
- 9) किरतिस्थान
- 10) माल्डोवा
- 11) तुर्कमेनिस्तान
- 12) ताजीकिस्तान
- 13) लताविया
- 14) लिथुनिया
- 15) एस्तोनिया
❇️ सोवियत प्रणाली :-
🔹 सोवियत संघ में समतावादी समाज के निर्माण के लिए केंद्रीकृत योजना , राज्य के नियंत्रण पर आधारित और साम्यवदी दल द्वारा निर्देशित व्यवस्था सोवियत प्रणाली कहलायगी ।
🔹 दूसरे शब्दों में सोवियत प्रणाली वह व्यवस्था है जिसके द्वारा सोवियत संघ ने अपना विकास किया ।
❇️ सोवियत प्रणाली की विशेषताएँ :-
- सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी ।
- सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी ।
- कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा था ।
- न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा बेरोजगारी न होना ।
- उन्नत संचार प्रणाली थी ।
- मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व ।
- उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण था ।
❇️ दूसरी दुनिया के देश :-
🔹 पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था , इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया ।
❇️ साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर :-
सोवियत अर्थव्यवस्था | अमेरिका की अर्थव्यवस्था |
( i ) राज्य द्वारा पूर्ण रूपेण नियंत्रित | ( i ) राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप |
( ii ) योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था | ( ii ) स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता पर आधारित |
( iii ) व्यक्तिगत पूंजी का अस्तित्व नहीं | ( iii ) व्यक्तिगत पूंजी की महत्ता । |
( iv ) समाजवादी आदर्शो से प्रेरित | iv ) अधिकतम लाभ के पूंजीवादी सिद्धांत । |
( v ) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व । | v ) उत्पादन के साधनों पर बाजार का नियंत्रण । |
❇️ मिखाइल गोर्बाचेव :-
🔹 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव ने राजनीतिक सुधारों तथा लोकतांत्रीकरण को अपनाया उन्होंने पुर्नरचना ( पेरेस्त्रोइका ) व खुलापन ( ग्लासनोस्त ) के नाम से आर्थिक सुधार लागू किए ।
❇️ सोवियत संघ समाप्ति की घोषणा :-
🔹 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस , यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की । CIS ( स्वतन्त्र राज्यों का राष्ट्रकुल ) बना 15 नए देशों का उदय हुआ ।
❇️ सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ :-
🔹 सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रह गई थी ।
🔹 इसकी निम्नलिखित कमियाँ थी :-
- कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से गतिरुद्ध हो चूका था ।
- भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था और गलतियों को सुधारने में शासन व्यवस्था अक्षम थी ।
- विशाल देश में केन्द्रीयकृत शासन प्रणाली थी ।
- सत्ता का जनाधार खिसकता जा रहा था । कम्युनिष्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई सरोकार नहीं था ।
- ‘ पार्टी के अधिकारीयों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे ।
❇️ सोवियत संघ के विघटन के कारण :-
- नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना ।
- सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा ।
- कम्यूनिस्ट पार्टी का बुरा शासन ।
- सोवियत संध में अपना पैसा और संसाधन पूर्वी यूरोप में अधिक लगाया ताकि वह उनके नियंत्रण में बने रहे ।
- लोगो को गलत जानकारी देना की सोवियत संघ विकास कर था है ।
- संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर करना ।
- प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना ।
- रूस की प्रमुखता ।
- गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना ।
- अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी ।
- राष्ट्रवादी भावनाओं और सम्प्रभुता की इच्छा का उभार ।
- सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना ।
❇️ सोवियत संघ के विघटन के परिणाम :-
- शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया । दूसरी दुनिया का पतन ।
- एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय ।
- हथियारों की होड़ की समाप्ति सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय ।
- विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्था ताकतवर देशो की सलाहकार बन गई ।
- रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना ।
- विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए ।
- समाजवादी विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व ।
- शॉक थेरेपी को अपनाया गया ।
- उदारवादी लोकतंत्र का महत्व बढा ।
❇️ भारत जैसे विकासशील देशों में सावियत संघ के विघटन के परिणाम :-
🔹 विकासशील देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिल गया ।
🔹 कम्यूनिस्ट विचारधारा को धक्का ।
🔹 विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व ( I.M.E. , World Bank )
🔹 बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा ।
❇️ एक ध्रुवीय विश्व :-
🔹 विश्व में एक महाशक्ति का होना ।
🔹 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय विश्व की स्थापना हुई।
🔹 उस वक्त विश्व में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला कोई देश नहीं था ।
🔹 विश्व में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बोलबाला हो गया क्योकि समाजवादी अर्थव्यवस्था असफल हो गयी ।
🔹 अमेरिका का सैन्य खर्च और सैन्य प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता का इतना अच्छा होना की विश्व मई कोई भी देश उसको चुनौती नहीं दे सकता था ।
🔹 अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संघटनो पर भी उसका वर्चस्व था।
🔹 उसकी जींस , कोक , पेप्सी आदि विश्व भर की संस्कृतियों पर हावी हो रहे थे ।
❇️ हथियारों की होड़ की कीमत :-
🔹 सोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को कड़ी टक्कर दी परन्तु प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में वह पश्चिमी देशों से पिछड़ गया ।
🔹 उत्पादकता और गुणवता के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया ।
❇️ शॉक थेरेपी : –
🔹 शॉक थेरेपी शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना । साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण ( परिवर्तन ) के मॉडल को अपनाने को कहा गया । इसे ही शॉक थेरेपी कहते है ।
❇️ शॉक थेरेपी की विशेषताएँ :-
- मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व । राज्य की संपदा का निजीकरण ।
- सामूहिक फार्म को निजी फार्म में बदल दिया गया ।
- पूंजीवादी पद्धति से खेती की जाने लगी ।
- मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना ।
- मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता ।
- पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव ।
- पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया ।
❇️ शॉक थेरेपी के परिणाम :-
🔹 पूर्णतया असफल , रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया ।
🔹रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट ।
🔹 समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट ।
🔹 सरकारी रियायत खत्म हो गई ज्यादातर लोग गरीब हो गए ।
🔹 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को कम दामों ( औने – पौने ) दामों में बेचा गया जिसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है ।
🔹 आर्थिक विषमता बढ़ी ।
🔹 खाद्यान्न संकट हो गया ।
🔹 माफिया वर्ग का उदय ।
🔹 अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन हो गया ।
🔹 कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन ।
❇️ गराज – सेल :-
🔹 शॉक थेरेपी से उन पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जिनमें पहले साम्यवादी शासन थी ।
🔹 रूस में , पूरा का पूरा राज्य – नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा । लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया ।
🔹 आर्थिक ढाँचे का यह पुनर्निर्माण चूँकि सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की ताकतें कर रही थीं , इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ । इसे ‘ इतिहास की सबसे बड़ी गराज – सेल ‘ के नाम से जाना जाता है ।
❇️ गराज – सेल जैसी हालात उत्पन्न होने का कारण :-
🔹 महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने – पौने दामों में बेच दिया गया ।
🔹 हालाँकि इस महा – बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार – पत्र दिए गए थे , लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की जरुरत थी ।
🔹 रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई । मुद्रास्पफीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही ।
❇️ संघर्ष व तनाव के क्षेत्र :-
🔹 पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है । इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है । रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले । चेकोस्लोवाकिया दो भागों – चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया ।
❇️ अरब स्प्रिंग :-
🔹 21 वीं शताब्दी में पश्चिम एशियाई देशों में लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन शुरू हुए।
🔹 ऐसे ही एक आंदोलन को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है।
🔹 इसकी शुरुआत ट्यूनीशिया में 2010 में मोहम्मद बउज़िज़ी के आत्मदाह के साथ हुई।
❇️ विरोध प्रदर्शन के तरीके :-
- (i) हड़ताल
- (ii) धरना
- (iii) मार्च
- (iv) रैली
❇️ विरोध का कारण :-
- (i) जनता का असंतोष
- (ii) गरीबी
- (iii) तानाशाही
- (iv) मानव अधिकार उल्लंघन
- (v) भ्रष्टाचार
- (vi) बेरोजगा
❇️ बाल्कन क्षेत्र :-
🔹 बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया । जिसमें शामिल बोस्निया – हर्जेगोविना , स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया ।
❇️ बाल्टिक क्षेत्र :-
🔹 बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया । एस्टोनिया , लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने । 2004 में नाटो में शामिल हुए ।
❇️ मध्य एशिया :-
🔹मध्य एशिया के तज़ाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला । अज़रबैजान , अर्मेनिया , यूक्रेन , किरगिझस्तान , जार्जिया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं । मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है । इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है ।
❇️ पूर्व साम्यवादी देश और भारत :-
🔹 पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है , रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है ।
🔹 दोनों का सपना बहुध्रवीय विश्व का है ।
🔹 दोनों देश सहअस्तित्व , सामूहिक सुरक्षा , क्षेत्रीय सम्प्रभुता , स्वतन्त्र विदेश नीति , अन्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल , संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है ।
🔹 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भारत रूसी हथियारों का खरीददार ।
🔹 रूस से तेल का आयात । परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद ।
🔹 कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश ।
🔹 गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स ( BRICS ) सम्मलेन के दौरान रूस – भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा , परमाणु उर्जा , अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया ।