❇️ नियोजन :-
🔹 नियोजन का आशय है उपलब्ध संसाधनों के श्रेष्ठतम प्रयोग के लिए भविष्य की योजना बनाना । नियोजन के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि , रोजगार के अवसरों में वृद्धि और आर्थिक स्थिरता आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है ।
❇️ भारत के विकास का अर्थ :-
🔹 आजादी के बाद लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक समाजिक न्याय दोनो ही है ।
🔹 इस बात पर भी सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक – आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी , उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता ।
🔹 सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी होगी । आजादी के वक्त ‘ विकास ‘ का पैमाना पश्चिमी देशों को माना जाता था । आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना ।
❇️ वामपंथी :-
🔹 ऐसे लोग जो गरीबों के भले की बात करते हैं ।
🔹 गरीबों को राहत पहुंचाने वाली नीतियों का समर्थन करते हैं ।
❇️ दक्षिणपंथी :-
🔹 यह खुली प्रतिस्पर्धा और बाजार मुल्क अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं ।
🔹 इनका कहना है सरकार को अर्थव्यवस्था में गैर जरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए ।
❇️ भारतीय विकास के मॉडल :-
🔹 विकास के दो मॉडल थे पहला – उदारवादी / पूँजीवादी मॉडल तथा दूसरा – समाजवादी मॉडल । भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल ( जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था ) को अपनाया ।
🔶 ( i ) उदारवादी / पूंजीवादी मॉडल – यह मॉडल यूरोप के अधिकतर देशों और अमेरिका में यह मॉडल अपनाया गया था । इस व्यवस्था के अंतर्गत हर सभी वस्तुओ का उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है और सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर होता है
🔶 ( ii ) समाजवादी मॉडल – यह मॉडल सोवियत रूस में अपनाया था । इसके अंदर सभी चीज़ो का उत्पादन सरकार द्वारा किया जाता है । देश में निजी क्षेत्र नहीं होता और सभी कम्पनियाँ सरकार के आधीन होती है ।
❇️ स्वतंत्रता के बाद भारत में अपनाए जाने वाले आर्थिक विकास के मॉडल से सम्बन्धित सहमति तथा असहमति के विभिन्न क्षेत्रों :-
🔶 सहमति के क्षेत्र :-
🔹 भारत के विकास का अर्थ आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक न्याय होना चाहिए ।
🔹 विकास के मुद्दे को केवल व्यापारियों , उद्योगपतियों व किसानो पर ही नहीं छोड़ा जा सकता है ।
🔹 अपितु सरकार को एक प्रमुख भूमिका निभानी चाहिये । गरीबी उन्मूलन तथा सामाजिक व आर्थिक वितरण के काम को सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी माना गया ।
🔶 असहमति के क्षेत्र :-
🔹 सरकार द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका पर असहमति ।
🔹 यदि आर्थिक वृद्धि से असमानता हो तो न्याय की जरूरत से जुड़े महत्व पर असहमति ।
🔹 उद्योग बनाम् कृषि तथा निजी बनाम सार्वजनिक क्षेत्र के जुड़े मुद्दे पर असहमति ।
❇️ मिश्रित अर्थव्यवस्था :-
🔹 मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद तथा पूंजीवाद दोनों की विशेषताओं को शामिल किया गया। देश में छोटे उद्योगों का विकास निजीं क्षेत्र में किया गया तथा बड़े उद्योगों के विकास की जिम्मेदारी सरकार ने अपने कंधो पर ली।
❇️ बोम्बे प्लान :-
🔹 1944 में उद्योगपतियों के एक समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक प्रस्ताव तैयार किया । इसे बाम्बे प्लान कहा जाता है ।
❇️ बोम्बे प्लान का उदेश्य :-
🔹 बाम्बे प्लान की मंशा थी कि सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए ।
❇️ योजना आयोग :-
🔹 भारत के आजाद होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया । योजना आयोग की स्थापना मार्च , 1950 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा की गई । प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने । भारत अपने विकास के लिए कौन – सा रास्ता और रणनीति अपनाएग यह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाई ।
❇️ योजना आयोग की कार्यविधि :-
🔹सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना ।
🔹 भारत – सरकार अपनी तरफ से एक दस्तवेज तैयार करेगी जिसमें अगले पांच सालों के लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होगी ।
🔹 इस योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया ।
🔹 एक हिस्सा गैरयोजना – व्यय का था । इसके अंतर्गत सालाना आधार पर दिन दैनिक मदों पर खर्च करना था । दूसरा हिस्सा योजना व्यय था ।
❇️ योजना आयोग के मुख्य कार्य :-
- देश के संसाधनों व पूँजी का अनुमान लगाना ।
- विकास की योजना बनाना विकास की प्राथमिकता निश्चित करना ।
- विकास योजना के बाधक कारकों का पता लगाना ।
- प्रगति की योजना का मूल्यांकन करना ।
❇️ नीति आयोग :-
🔹 01 जनवरी 2015 से योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग अस्तित्व में आया है । जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं एवं वर्तमान उपाध्यक्ष राजीव कुमार है । नीति शब्द का विस्तार है National Institute For Transforming India .
❇️ राष्ट्रीय विकास परिषद :-
🔹 इसकी की स्थापना 6 अगस्त, 1952 ई० में हुई थी ।
🔹 योजना के निर्माण में राज्यों की भागीदारी हो । इस उद्देश्य से राष्ट्रीय विकास परिषद बनाया गया ।
🔹 यह देश की पंचवर्षीय योजना का अनुमोदन करती है ।
🔹 इसके अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते है । भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं योजना आयोग के सदस्य भी इसके सदस्य होते है ।
❇️ प्रथम पंचवर्षीय योजना :-
- यह योजना 1951 से 1956 तक थी ।
- इसमें ज्यादा जोर कृषिक्षेत्र पर था ।
- इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया ।
- भागड़ा – नांगल परियोजना इनमे से एक थी ।
❇️ द्वितीय पंचवर्षीय योजना :-
- यह योजना 1956 से 1961 तक थी ।
- इस योजना में उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया ।
- सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया ।
- इस योजना के योजनाकार पी . सी . महालनोबीस थे ।
❇️ विकास का केरल मॉडल :-
🔹 केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा , स्वास्थ्य , भूमि सुधार , कारगर खाद्य – वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है ।
🔹 जे . सी . कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की , जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था ।
🔹 चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी ।
🔹 भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा की समाप्ति , जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना ( चकबंदी ) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत-बो रहे थे , उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए ।
🔹 1960 के दशक में सूखा व अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गयी । खाद्य संकट के कारण गेहूँ का आयात करना पड़ा ।
❇️ हरित क्रांति :-
🔹 सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई , जो कि हरित क्रान्ति के नाम से जानी जाती है । अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का निर्णय किया , जहाँ सिचाई सुविधा मौजूद थी , तथा किसान समृद्ध थे ।
🔹 सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज , उवर्रक , कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया । उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने की गारन्टी दी । इन संयुक्त प्रयासों को ही हरित क्रान्ति कहा गया । भारत में हरित क्रान्ति के जनक एम . एस . स्वामीनाथन को कहा जाता है ।
❇️ हरित क्रांति के सकरात्मक प्रभाव :-
- इसके कारण खेती की पैदावार में बढ़ोतरी हुई ।
- इसके कारण गेहूँ की पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई ।
- पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके समृद्ध हुए ।
- किसानों की स्थिति में सुधार आया ।
❇️ हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव :-
🔹 क्षेत्रीय व सामाजिक असमानता बढ़ी ।
🔹 हरित क्रांति के कारण गरीब किसान व बड़े भूस्वामी के बीच अंतर बढ़ा जिससे वामपंथी संगठनों का उभार हुआ ।
🔹 मध्यम श्रेणी के भू – स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ ।
❇️ श्वेत क्रान्ति :-
🔹 ‘ मिल्कमैन ऑफ इंडिया ‘ के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन ने गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपरण परिसंघ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ‘ अमूल ‘ की शुरूआत की । इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े । इस मॉडल के विस्तार को ही श्वेत क्रान्ति कहा गया ।