❇️ शीतयुद्ध का अर्थ :-
🔹 शीतयुद्ध का अर्थ होता है जब दो या दो से अधिक देशो के बीच ऐसी स्थिति बन जाए कि लगे युद्ध होकर रहेगा परंतु वास्तव मे कोई युद्ध नही होता । इसमे युद्ध की पूरी संभावना रहती है , युद्ध की आशंका , डर , तनाव , संघर्ष जारी रहता है लेकिन युद्ध नही होता ।
❇️ शीत युद्ध :-
🔹 शीत युद्ध से अभिप्राय विश्व की दो महाशक्तियों अमरीका व भूतपूर्व सोवियत संघ के बीच व्याप्त उन कटु संबधों के इतिहास से है जो तनाव , भय ईर्ष्या पर आधारित था । दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945-1991 के मध्य इन दोनों महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध का दौर चला और विश्व दो गुटों में बँट गया । यह दोनों के मध्य विचारात्मक तथा राजनैतिक संघर्ष था ।
❇️ शीतयुद्ध की शुरुआत :-
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरूआत हुई ।
- शीत युद्ध 1945-1991 तक चला ।
❇️ शीतयुद्ध का अंत :-
🔹 क्यूबा का मिसाइल संकट शीत युद्ध का अंत था | लेकिन इसका प्रमुख कारण सोवियत संघ का विघटन माना जाता है । बर्ष 1991 में कई कारणों की वजय से सोवियत संघ का विघटन हो गया जिसने शीतयुद्ध की समाप्ति को चिहिंत किया क्योंकि दो महाशक्तियों में से एक अब कमजोर पड़ गयी थी ।
❇️ शीतयुद्ध का कारण :-
🔹 अमरीका और सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक – दूसरे के मुकाबले खड़ा होना शीतयुद्ध का कारण बना ।
🔹 परमाणु बम से होने वाले विध्वंस की मार झेलना किसी भी राष्ट्र के बस की बात नहीं ।
🔹 दोनों महाशक्तियाँ परमाणु हथियारों से संपन्न थी । उनके पास इतनी क्षमता के परमाणु हथियार थे कि वे एक – दूसरे को असहनीय क्षति पहुँचा सकते है तो ऐसे में दोनों के रक्तरंजित युद्ध होने की संभावना कम रह जाती है ।
🔹 एक दुसरे को उकसावे के वावजूद कोई भी राष्ट्र अपने नागरिकों पर युद्ध की मार नहीं देखना चाहता था ।
🔹 दोनों राष्ट्रों के बीच गहन प्रतिद्वंदिता ।
❇️ शीतयुद्ध एक विचारधारा की लड़ाई :-
🔹 अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधाराओ की लड़ाई से तातपर्य है कि – दुनिया में आर्थिक , सामाजिक जीवन को सूत्र बद्ध करने का सबसे अच्छा सिद्धान्त कौन सा है ।
🔹 अमेरिका ऐसा मानता था कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था दुनिया के लिए बेहतर है जबकि सोवियत संघ मानता था कि समाजवादी , साम्यवादी अर्थव्यवस्था बेहतर है ।
❇️ द्वितीय विश्व युद्ध के गुट :-
(1) मित्र राष्ट्र – द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ , फ्रांस , ब्रिटेन संयुक्त राज्य अमेरिका को विजय मिली इन्ही 4 राष्ट्रों को संयुक्त रूप से मित्र राष्ट्र के नाम से जाना जाता है ।
(2) धुरी राष्ट्र – जिन राष्ट्रों को द्वितीय विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था उन्हें धुरी राष्ट्र के नाम से जाना जाता है । ये राष्ट्र थे जर्मनी , जापान , इटली ।
❇️ द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत :-
🔹 द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत अगस्त 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े । इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध का अंत हुआ ।
❇️ अमेरिका की आलोचना :-
🔹 अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है । ऐसे में बम गिरने की आवश्यकता नही थी।
❇️ अमेरिका ने अपने पक्ष में कहा :-
🔹 अमरीका के समर्थकों का तर्क था कि युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने तथा अमरीका और साथी राष्ट्रों की आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था ।
❇️ हमले के पीछे उद्देश्य :-
🔹 वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है ।
❇️ क्यूबा मिसाइल संकट :-
🔹 क्यूबा एक छोटा सा द्वपीय देश है जो कि अमेरिका के तट से लगा है । यह नजदीक तो अमेरिका के है लेकिन क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे वित्तीय सहायता देता था ।
🔹 सोवियत संघ के नेता नीकिता खुश्चेव ने क्यूबा को रूस के ‘ सैनिक अड्डे ‘ के रूप में बदलने का फैसला किया । 1962 में उन्होंने क्यूबा को रूस के सैनिक अड्डे के रूप में बदल दिया।
🔹 1962 में खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं । इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया । हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमरीका के मुख्य भू – भाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर हमला कर सकता था ।
🔹 अमेरिका को इसकी खबर 3 हफ्ते बाद लगी। अमरीकी राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों के बीच युद्ध छिड़ जाये । अमेरिका ने अपने जंगी बेड़ों को आगे कर दिया ताकि क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए । इन दोनो महाशक्तियों के बीच ऐसी स्थिति बन गई कि लगा कि युद्ध होकर रहेगा । इतिहास में इसी घटना को क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है ।
❇️ क्यूबा मिसाईल संकट के समय मुख्य नेता :-
1 ) क्यूबा फिदेल कास्त्रो 2 ) सोवियत संघ निकिता खुस्च्रेव 3 ) अमरीका जॉन ऍफ़ कैनेडी
1 ) क्यूबा | फिदेल कास्त्रो |
2 ) सोवियत संघ | निकिता खुस्च्रेव |
3 ) अमरीका | जॉन ऍफ़ कैनेडी |
❇️ दो – ध्रुवीय विश्व का आरम्भ :-
🔹 दोनों महाशक्तियाँ विश्व के विभिन्न हिस्सों पर अपने प्रभाव का दायरा बढ़ाने के लिए तुली हुई थीं । दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद अमेरिका तथा सोवियत संघ को दो गुटों में बांट दिया गया विश्व दो में बट गया , यही दो ध्रुवीय विश्व है ।
🔹 बंटवारा सबसे पहले यूरोप महाद्वीप से शुरू हुआ ।
❇️ पूर्वी यूरोप :-
🔹 पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत गठबंधन में शामिल हो गए । इस गठबंधन को पूर्वी गठबंधन कहते है । इसमें शामिल देश हैं – पोलैंड , पूर्वी जर्मनी , हंगरी , बुल्गारिया , रोमानिया आदि ।
❇️ पश्चिमी यूरोप :-
🔹 पश्चिमी यूरोप के अधिकतर देशों ने अमरीका का पक्ष लिया । इन्ही देशों के समूह को पश्चिमी गठबंधन कहते हैं । इस गठबंधन में शामिल देश है – ब्रिटेन , नार्वे , फ्रांस , पश्चिमी जर्मनी , स्पेन , इटली और बेल्जियम आदि ।
❇️ नाटो ( NATO ) :-
🔹 पश्चिमी गठबन्धन ने स्वयं को एक संगठन का रूप दिया । 4 अप्रैल 1949 में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन ( North Atlantic Treaty Organisation ) ( नाटो ) की स्थापना हुई । जिसमें 12 देश शामिल थे ।
🔹 इस संगठन ने घोषणा की कि उत्तरी अमरीका अथवा यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर भी हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे । और नाटो में शामिल हर देश एक दुसरे की मदद करेगा ।
❇️ वारसा संधि :-
🔹 सोवियत संघ की अगुआई वाले पूर्वी गठबंधन को वारसा संधि के नाम से जाना जाता है । इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी और इसका मुख्य काम ‘ नाटो ‘ में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना था ।
❇️ महाशक्तियों के लिए छोटे देश का महत्व :-
🔹 महत्त्वपूर्ण संसाधनों – जैसे तेल और खनिज के लिए ।
🔹 भू – क्षेत्र – ताकि यहाँ से महाशक्तियाँ अपने हथियारों और सेना का संचालन कर सके ।
🔹 सैनिक ठिकाने – जहाँ से महाशक्तियाँ एक – दूसरे की जासूसी कर सके ।
🔹 आर्थिक मदद – जिसमें गठबंधन में शामिल बहुत से छोटे – छोटे देश सैन्य – खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे ।
🔹 विचारधारा – गुटों में शामिल देशों की निष्ठा से यह संकेत मिलता था कि महाशक्तियाँ विचारों का पारस्परिक युद्ध जीत रही हैं ।
🔹 गुट में शामिल हो रहे देशों के आधार पर वे सोंच सकते थे कि उदारवादी लोकतंत्र और पूँजीवाद , समाजवाद और साम्यवाद से कही बेहतर है ।
❇️ शीतयुद्ध के परिणाम :-
- गुटनिरपेक्ष देशों का जन्म ।
- अनेक खूनी लडाइयों के वावजूद तीसरे विश्वयुद्ध का टल जाना ।
- अनेक सैन्य संगठन संधियाँ ।
- दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु जखीरे और हथियारों की होड़ ।
- दो ध्रुवीय विश्व
सैन्य संधि संगठन अमरीका सोवियत संघ 1 . NATO – ( 1949 ) | 2 . SEATO – ( 1954 ) | 3 . CENTO – ( 1955 ) वारसा पैक्ट 1955
सैन्य संधि | संगठन |
---|---|
अमरीका | सोवियत संघ |
1 . NATO – ( 1949 ) | | |
2 . SEATO – ( 1954 ) | | |
3 . CENTO – ( 1955 ) | वारसा पैक्ट 1955 |
❇️ दोनों महाशक्तियों द्वारा परमाणु जखीरे एवं हथियारों की होड़ कम करने के लिए सकारात्मक कदम :-
- परमाणु परिक्षण प्रतिबन्ध संधि
- परमाणु अप्रसार संधि
- परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि ( एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी )
❇️ SEATO एवं CENTO :-
🔹 अमरीका ने पूर्वी और द० पू० एशिया तथा पश्चिम एशिया मे गठबंधन का तरीका अपनाया इन्ही गठबन्धनो को SEATO , CENTO कहा गया ।
❇️ SEATO :-
🔹 south – East Asian Treaty organization ( दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन )
🔹 स्थापना-1954
🔹 उद्देश्य – साम्यवादियो की विस्तारवादी नीतियों से दक्षिण पूर्व एशियाई देशो की रक्षा करना ।
❇️ CENTO :-
🔹 Central Treaty Organization ( केन्द्रीय संधि संगठन )
🔹 स्थापना-1955
❇️ शीत युद्ध के दायरे :-
🔹 विरोधी खेमों में बैठे देशों के बीच संकट के अवसर आए । युद्ध हुए । संभावना रही मगर कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ । कोरिया, वियतनाम और अफगानिस्तान जैसे कुछ क्षेत्रों में अधिक जनहानि हुई । शीतयुद्ध के दौरान खूनी लड़ाई भी हुई ।
❇️ गुटनिरपेक्षता :-
🔹 गुटनिरपेक्षता का अर्थ सभी गुटों से अपने को अलग रखना है ।
❇️ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन :-
🔹 शीतयुद्ध के दौरान दोनो महाशक्तियों के तनाव के बीच एक नए आन्दोलन ने जन्म लिया जो दो ध्रुवीयता में बंट रहे देशों से अपने को अलग रखने के लिए था जिसका उदेश्य विश्व शांति था । इस आन्दोलन का नाम गुटनिरपेक्ष आन्दोलन पड़ा । गुटनिरपेक्ष आन्दोलन महाशक्तियों के गुटों में शामिल न होने का आन्दोलन था । परन्तु ये अंतर्राष्ट्रीय मामलों से अपने को अलग – थलग नहीं रखना था अपितु इन्हें सभी अंतर्राष्ट्रीय मामलों से सरोकार था ।
❇️ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की स्थापना :-
🔹 सन् 1956 में युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रांज टीटो , भारत के जवाहर लाल नेहरू और मिस्र के गमाल अब्दुल नासिर ने एक सफल बैठक की । जिससे गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म हुआ ।
❇️ गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक नेताओं के नाम :-
- ( i ) जोसेफ ब्रांज टीटो – युगोस्लाविया
- ( ii ) जवाहर लाल नेहरू – भारत
- ( iii ) गमाल अब्दुल नासिर – मिस्र
- ( iv ) सुकर्णों – इंडोनेशिया
- ( v ) वामे एनक्रुमा – घाना
❇️ प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 1961 में बेलग्रेड में हुआ ।
- इसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए ।
❇️ 14 व गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 2006 क्यूबा ( हवाना ) में हुआ ।
- 166 सदस्य देश और 15 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए ।
❇️ 17 व गुटनिरपेक्ष सम्मलेन :-
- 2016 में वेनेजुएला में हुआ ।
- इसमें 120 सदस्य – देश और 17 पर्यवेक्षक देश शामिल हुए ।
❇️ गुटनिरपेक्षता को अपनाकर भारत को क्या लाभ :-
🔹 अंतरराष्ट्रीय फैसले स्वतंत्र रूप से ले पाया ऐसे फैसले जिसमें भारत को लाभ होना ना कि किसी महाशक्ति को ।
🔹 गुटनिरपेक्षता से भारत हमेशा ऐसी स्थिति में रहा कि अगर कोई एक महाशक्ति उसके खिलाफ जाए तो वह दूसरे की तरफ जा सकता था ऐसे में कोई भी भारत को लेकर ना तो बेफिक्र रह सकता था ना दबाव बना सकता था।
❇️ भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना :-
🔹 आलोचकों ने कहा गुटनिरपेक्षता की नीति सिद्धांत विहीन है भारत इसकी आड़ में अंतरराष्ट्रीय फैसले लेने से बचता है ।
🔹 भारत के व्यवहार में स्थिरग नहीं है भारत में (1971) की युद्ध में सोवियत संघ से मदद ली थी कुछ नहीं तो यह मान लिया कि हम सोवियत खेमे में शामिल हो गए है। जब कि हमने सिर्फ मदद ली थी सोवियत संघ हमारा सच्चा दोस्त था उसने हमेशा हमारी मदद की है ।
❇️ गुटनिरपेक्ष ना तो पृथकवद है और ना ही तथास्तया :-
🔶 पृथकवद :- पृथकवद का अर्थ होता है अपने आप को अंतरराष्ट्रीय मामलों से काट के रखना । अर्थात बस अपने आप से मतलब रखना बाकी किसी दूसरे से अलग रहना। ऐसा अमेरिका ने किया (1789 – 1914) तक पृथकवद को अपना के रखा था ।
🔹 भारत ने ऐसा नहीं किया था गुटनिरपेक्षता को अपनाया लेकिन पृथकवाद की नीति नहीं अपनायी।
🔹 भारत आवश्यकता पड़ने पर मदद लेता था और दूसरों की मदद करता था ।
🔶 तथास्तया :- गुटनिरपेक्षता का अर्थ तथास्तया का धर्म निभाना नहीं है तथास्तया को अपनाने का मतलब है मुख्यता: युद्ध में शामिल नहीं होना लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह युद्ध को समाप्त करने में मदद कर दें और यह देश युद्ध को सही गलत होने पर कोई पक्ष भी नहीं रखते
🔹 गुटनिरपेक्ष देशों ने तथास्तया को बिल्कुल भी नहीं अपनाया क्योंकि भारत तथा अन्य देशों ने हमेशा से दोनों महाशक्तियों के बीच शत्रुता को कम करने का प्रयास किया है ।
❇️ नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था :-
🔹 गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकतर देश की अल्पविकसित देशों का दर्जा मिला था यह देश गरीब देश थे इनके सामने मुख्य चुनौती अपनी जनता को गरीबी से निकालना था ।
🔹 इनके लिए आर्थिक विकास जरूरी था क्योंकि बिना विकास के कोई भी देश सही मायने में आजाद नहीं रह सकता ।
🔹 ऐसे में देश उपनिवेश (गुलाम) भी हो सकते हैं इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ ।
🔹 1972 में (U.N.O) के व्यापार और विकास में संबंधित सम्मेलन (UNCTAD) मैं नाम से एक रिपोर्ट आई ।
🔹 इस रिपोर्ट में वैश्विक- व्यापार प्रणाली से सुधार का प्रस्ताव किया गया इस रिपोर्ट में कहा गया :-
- 1) अल्पविकसित देशों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार होगा यह देश अपने इन संसाधनों का इस्तेमाल अपने तरीके से कर सकते हैं ।
- 2) अल्पविकसित देशों की पहुंच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी यह देश अपना समान पश्चिमी देश तक बेच सकेंगे ।
- 3) पश्चिमी देश में मंगायी या जारी टेक्नोलॉजी प्रद्योगिकी की लागत कम होगी ।
- 4) अल्प विकसित देशों की भूमिका अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में उनकी भूमिका बढ़ाई जाएगी ।
❇️ शस्त्र नियंत्रण संधियाँ :-
1️⃣ L . T . B . T . सीमित परमाणु परीक्षण संधि :-
- 5 अगस्त 1963
2️⃣ SALT सामारिक अस्त्र परिसीमन वार्ता :-
- 1 ) 26 मई 1972
- 2 ) 18 जून 1972
3️⃣ START – सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि :-
- 1 ) 31 जुलाई 1991
- 2 ) 3 जनवरी 1993
4️⃣ N . P . T . – परमाणु अप्रसार संधि :-
- 1 जुलाई 1968